Sunday, February 9, 2014

गजल-१८३ 

मुरलीकेँ धुन सुना गेल ओ 
झलकी देखा पड़ा गेल ओ 

चुपचापे ठाढ़ एकातमे 
मुसकीमे हिय रिझा गेल ओ 

ककरा कोना कहब हाल की 
यमुनाकेँ जल सुखा गेल ओ 

जखने किछो कहल नेहमे 
छलिया जे छल बुझा गेल ओ 

हियकेँ राजीव सुनलक कखन 
करमक टा गुण बता गेल ओ 

२२२ २१२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

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