Sunday, February 2, 2014

गजल-१८१ 

अमीर गरीब नै पाइसँ होइ छैक
अनेर सवाल नै आइसँ होई छैक 

हजार टकाक ई सत् त' बाउ भाइ
पहाड़ सनक गप राइसँ होई छैक 

अटूट भरोस टा राखि चलब सखा त'
समांग विशेष नै भाइसँ होई छैक

प्रयास निरर्थके लोक करत ग' जखन कि
नुकैल त' पेट नै दाइसँ होइ छैक 

अतेक मिजाज आ शान कि ठीक बात
सुजान कि लोक इतराइसँ होइ छैक 

समेट जतेक राखब ग' ततेक नीक
विचार विभेद फटिआइसँ होइ छैक 

हिसाब किताब राजीव क' देख लेब
कुटाइ पिसाइ लेढाइसँ होइ छैक 

१२१ १२१ २२११ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र 

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