Tuesday, February 4, 2014

भक्ति गजल - ८ 

हो ज्ञानक सतमे मान शारदे
चाही एक्के वरदान शारदे

नै पढि लिखि लोकक बुद्धि बज्र हो
राखू आबो ई ध्यान शारदे

हे धवला अभरन हंसवाहिनी
दी निश्छल निर्मल ज्ञान शारदे 

बुधि बड़ घुठ्ठीमे लोककेँ भरल
धरि सत झूठक नै भान शारदे

हे माए नव किछु आब होइ आ
चमकय शिक्षाकेँ चान शारदे

हे वीणा करधारिनि सुनर वयन
घर घरमे सुधि बुधि आन शारदे 

बिनबी कर राजीव जोड़ि दुहि
हो मिथिला मंगलगान शारदे

222 2221 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

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