Sunday, June 9, 2013


गजल-६९ 

दुनिये टा अपना आप मे त व्यापार भ' गेलए
सभ रूपे लोकाचार तजि निराकार भ' गेलए
 
हेहर जे जतबे बात बैबहारक भ' क' चलि रहल 
ततबे बरका से गाम मे कलाकार भ' गेलए  

अखबारक बाते जुनि करू खबर ख़ास कथी पढ़ब 
चोरी देहक मर्दन सगर समाचार भ' गेलए 

जकरे देखू भेटत दहो बहो नोर खसाबिते 
शासक हाथक धुर खेल टा जनाधार भ' गेलए

मोजर क्यौ ककरो देत आब "राजीव" सहज कहाँ 
खहरल हारल दैवो लजा क' लाचार भ' गेलए 

२२२  २२२१२  १२२१  १२१२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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