कहलक शराब एक दिन ,बोतल सँ भ उदास
कहियोऊ कि हम तोरा,कतेक अछि मोन खरास
पीलक त सबतैर सब,कोनो नै कोनो कारणे
मान हनन क सदिखण,कैलक सतत निराश
क्योऊ जिबय ला पिलक,क्योऊ जील पिबय ला
क्योऊ खुश भ पीलक,क्योऊ गम मिटबय ला
सुख हो वा दुःख,हम सब संग निष्पक्ष रहलहुं
पिबि ,अपन मोनक क,कैलक हमरा हताश
उचित हो वा अनुचित,हो नीक वा बेजा
रहिकय गवाह सबहक,चुपचाप सबटा सहलहूँ
सूरा स बिगारि हमरा,चुल्लू बना देलक
ओहदा घटाबय के कैलक बृहद विन्यास
सब गप्प हमर मोनक,मोनहिं टा में रहि गेल
नै पुछलक,नै बुझलक,सोच सबटा बहि गेल
जौं बश हमर चलित,इन्द्रलोके टा तक रहितहूँ
आनि मुदा घर-घर में ,कैलक हमर विनाश
---राजीव रंजन मिश्र
२६.०५.२०१२
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