Monday, June 25, 2012

वो मिटटी की खुशबू,वो ताज़ी हवा,
महक प्यारे फूलों की,चहक पंक्षियों की!
छटा है निराली,मेरे गांव की जो,
वो,भला सारे जग में मिलेगी कहाँ!

किरण उगते सूरज की,नित दिन सबेरे,
ख़ामोशी दोपहर की व डूबते सूरज की वो लालिमा!
तपिश में जो ठंढक है,मेरे गांव की जो,
वो,भला सारे जग में मिलेगी कहाँ!

फसल लहलहाते और हरियाली खेतों की,
मदमस्त हो गाते विरह गीत खेतिहर!
धुन में है सरगम, मेरे गांव की जो,
वो,भला सारे जग में मिलेगी कहाँ!

वो निःशब्द रातें ,वो तारों की झिलमिल,
थके हारे आँखों में,अमन चैन की नींद,
उजाला है चांदनी में,मेरे गांव की जो,
वो,भला सारे जग में मिलेगी कहाँ!

राजीव रंजन मिश्र
२२.०३.२०१२

No comments:

Post a Comment