Monday, January 23, 2012

लहलहाते खेत और,
खलिहान की वो रंगिमा!
वो मनोरम दृश्य,
और सूरज की वो लालिमा!
दिल को लुभा जाती है,
मेरे गाँव की वो भंगिमा!

हर तरफ खिलते हुए,
मदमस्त फूलों की छटा,
फसलों को देती ताजगी,
बादल की वो काली घटा!
दिल को देता है झूमा,
मेरे गाँव की वो भंगिमा!

चिंता से कोसो दूर,
और प्रपंच का न कोई चिन्ह है!
शहरों की दूषित हवा से,
हर तरह वो भिन्न है!
तन को सबल कर देता है छण में,
मेरे गाँव की वो भंगिमा!

चिर-सुपरिचित लोग और,
वात्सल्य उनके प्रेम का!
जी को कर जाता है विह्वल,
अमूल्य भेंट उनके स्नेह का!
जीवन को नित देती है उत्प्रेरणा,
मेरे गाँव की वो भंगिमा!

---राजीव रंजन मिश्र 
१३.०१.२०१२

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