Wednesday, January 18, 2012

जो भी किया हो,दर्द पर शिकवा नहीं किया!
हमने कभी भी ,वादों पर भरोसा नहीं किया!
ठुकरा दी हमने ,बार-बार जन्नत की पेशकश!
ईमान बेच कर,कभी भी सौदा नहीं किया!


खुदा के रहमत का,हम भी हैं हक़दार!
इश्वर ने कभी भी,अपना-पराया नहीं किया!
गम के समन्दरों, में उतरता  चला  गया !
दुःख सहता रहा,उन्हें उलीचा नहीं किया!


कुछ लोग ग़मों के वास्ते ही,बनते हैं,ऐ मेरे दोस्त!
गम पर कभी भी हमने,उफ़ तक नहीं किया!
ढाओ  सितम मजबूर पर,तुम तफरीह के लिये!
ये जान लो की जिन्दगी,मैंने तेरे नाम कर दिया!





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