Thursday, March 8, 2012


हम क्या लिखते हैं,कैसा लिखते है,
यह तो बहस की बात है,
पर सच्चाई यह है, 
कि,हम लिखते तो हैं!!
हमको न इस बात की,
है परवाह दोस्तों!
क्या यही काफी नहीं,
कि,हम सीखतें तो हैं!!
कुछ लोग ज़माने से.
अपने-आप को रखते है छुपाकर,
हमें ख़ुशी है इस बात की,
कि,हम सरेआम दिखते तो है!!
---राजीव रंजन मिश्र
०३.०३.२०१२

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