Monday, November 7, 2011

कभी दिल ने,कभी हमने

कभी दिल ने,कभी हमने,
हर-एक -बंधन को है तोऱा !
कभी जो बच भी निकला तो,
ज़माने ने नहीं छोऱा!
कभी  लरते रहे खुद से,
कभी खुदगर्ज लोगो से!
बरी कठिनाइयों से हमने,
हवा के रुख को है मोऱा !
चला था भीर में पैदल,
आ पहुँचा वीराने में !
रही हसरत की कुछ पा ल़ू,
निरा धुआं निकला, जो मैंने आसमां फ़ोऱा!



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